Saturday, April 9

उसकी कामयाबी एक मिसाल है

कानपुर स्थित यशोदानगर की गंगा विहार कालोनी ग़रीबों की बस्ती है. इसी बस्ती में रहते हैं मोची राजेन्द्र प्रसाद जिनके अठारह साल के बेटे अभिषेक भारती ने आईआईटी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में सफल होकर एक मिसाल क़ायम की है.

उन्होंने अनुसूचित जाति श्रेणी में 154 वां स्थान हासिल किया है.

घर के नाम पर दस गुना दस फुट का एक कमरा है. इसी एक कमरे में राजेंद्र प्रसाद, पत्नी संगीता और उनके चार बेटे रहते हैं.

कमरे के बीच में एक दरवाजा है, जो एक छोटे से आँगन में खुलता है. एक रस्सी पर कपड़े टंगे हैं. दरवाजे से दाहिनी तरफ एक तख्त है, जिसमें वे सब अखबार बिखरे हैं, जिनमें अभिषेक की कामयाबी की खबर मोटे-मोटे अक्षरों में छपी हैं.

बगल के घर में बिजली है, मगर अभिषेक के माँ-बाप के पास इतना पैसा नहीं कि कनेक्शन ले सकें, इसलिए अभिषेक और उसके तीनों भाई लालटेन की रोशनी में ही पढ़ाई करते हैं.

अभिषेक कहते हैं, “शुरुआत में तो मुझे नहीं पता था कि यह आईआईटी क्या होता है, मगर इंटर फर्स्ट ईयर में मेरे एक सर संदीप गोयल ने कहा कि आईआईटी भारत का एक टॉप का इम्तिहान होता है, तब मेरे मन में भी लगन लगी कि मुझे यह इम्तिहान पास करना है.”

अभिषेक कहते हैं, “मैं रोज लगभग सात-आठ घंटे पढ़ाई करता था. लेकिन मैंने कोई शेड्यूल नहीं बनाया कि इतने घंटे फिजिक्स, केमिस्ट्री या मैथ ही पढ़ना है, क्योंकि कोई बाध्यता होने से पढ़ाई में मज़ा नहीं आता. और मज़े के बिना आईआईटी नहीं निकलती.”

अभिषेक अपनी इस सफलता में भाभा कोचिंग को श्रेय देना नहीं भूलते, जिसने उन्हें मुफ्त में पढ़ाया.

अभिषेक के गणित के टीचर संदीप गोयल ने बताया कि उसके अंदर किसी विषय को समझने और सवालों को अपने ढंग से हल करने की विशेष क्षमता है.

राजेन्द्र प्रसाद के मुताबिक मैंने बेटे को बस यही समझाया था, "देखो! तुम्हें यह बूट पालिश का काम नहीं करना है."

अभिषेक आगे चलकर अंतरिक्ष विज्ञान पढ़ना चाहता है और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम उसके आदर्श हैं. मगर अभिषेक की दिलचस्पी राजनीति में बिलकुल नहीं है, क्योंकि उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफ़ी ज़्यादा भ्रष्टाचार है.

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