मैं वक्त को दोहराऊंगा, लौट करके फिर मैं आऊंगा
खो दिया है जो मैंने, आखिर उसी को पाउँगा
अज़ीज़ था दिल से मुझे वो, उसे बस इतना बता दो...
जान ये निकली नहीं, अभी हारा नहीं हूँ मैं
इस हथेली को जला कर, ख्वाब देखे थे कभी
कांच के गित्ते ही निकले, राख से औंधे सभी
(काले चिराग ही तो थे वो, विश्वास की धुंध मैं खोये हुए)
तेल को तू रख गरम, इनको मैं फिर जलाऊंगा...
ताप मेरा बाद रहा, अभी हारा नहीं हूँ मैं
बेच दिए अरमान सारे, मेहनतकशी की राह पर
इस अरमान को पाना था, मिलता यही इस राह पर
आज कुंद हैं अरमान सारे, कदमों मैं फिर भी जान है...
कहदो आज रास्तों से, अभी हारा नहीं हूँ मैं
1 comment:
bhai jaan aapke in panktiyo se to mujhe nayi taajgi mil gayi thank you...
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